Sunday, June 7, 2020

बुन्देलखण्ड राज्य हमारा अधिकार है। हम इसे लेकर रहेंगे।

आज जब बुन्देलखण्ड राष्ट्र समिति पृथक बुन्देलखण्ड राज्य हेतु सतत संघर्षशील है, तथा द्रुत गति से युवाओं को अपने इस प्रयास में जोड़ने का कार्य कर रही है, तो बुंदेलियों के मन में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है, कि यदि बुन्देलखण्ड राज्य का गठन हो भी गया, तो उससे उनके निजी जीवन पर क्या प्रभाव पड़ेगा? यदि एक बार बुंदेलियों को समझ आ गया कि पृथक राज्य से उनका जीवन सँवर सकता है, जीविकोपार्जन हेतु आवश्यक अवसरों की उपलब्धता यहीं अपने ही क्षेत्र में सुनिश्चित की जा सकती है, तो बड़ी संख्या में लोग इस मिशन में सम्मिलित होंगे तथा हमारी मांग पूरी होगी।

 बुन्देलखण्ड की वर्तमान स्थिति-

बुन्देलखण्ड दो बड़े राज्यों उत्तर प्रदेश तथा मध्यप्रदेश के मध्य स्थित है। जिसमे उप्र तथा मप्र के जिले सम्मिलित हैं। प्राकृतिक संसाधनों का धनी यह क्षेत्र प्रत्येक सरकार की दृष्टि में उपेक्षित ही रहा है। यहां की अधिकांश जनसँख्या का मुख्य व्यवसाय कृषि एवं पशुपालन है। कृषि की वर्तमान स्थिति किसी से छुपी नहीं है, सूखा, ओलावृष्टि एवं आवारा पशुओं की चौतरफा मार के कारण किसान की आर्थिक स्थिति अत्यन्त दयनीय है। सरकारों नें बुन्देलखण्ड का दोहन तो किया परन्तु पालन करने में असफल सिद्ध हुईं।

 अलग बुन्देलखण्ड की मांग क्यों?

बीआरएस अलग राज्य की मांग इसलिए कर रही है, कि बुंदेलियों का पुराना वैभव व गौरव वापस लाया जा सके। बुन्देलखण्ड की समस्याओं का निदान किया जा सके। रोजगार के पर्याप्त अवसर उपलब्ध रहें, योजनाओं का पूर्ण निष्ठा एवं ईमानदारी से पूर्ण अनुपालन हो सके। युवाओं को उच्च शिक्षा के लिए पलायन न करना पड़े, स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर बनें, किसानों को फसल विक्रय हेतु दर दर न भटकना पड़े। हर हाथ को काम हो तथा काम का उचित दाम हो।

 अलग राज्य के लाभ-

अलग राज्य शासन प्रशासन की दृष्टि से लाभकारी सिद्ध होते हैं, बशर्ते वो बहुत छोटे न हों। अपना बुन्देलखण्ड क्षेत्र प्रत्येक दृष्टि से एक पृथक राज्य बनने की क्षमता रखता है। अलग राज्य से शासन उस क्षेत्र की समस्याओं को समयबद्ध तरीके से दूर कर सकता है, रोजगार, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि के क्षेत्र में बेहतर कार्य किया जा सकता है।
भारत के सम्बन्ध में देखा जाये तो आज तक जितने भी
विभाजन हुए हैं, उन राज्यों का अपेक्षाकृत अधिक विकास हुआ है। आर्थिक सामाजिक एवं औद्योगिक रूप से पिछड़े हुए क्षेत्रों नें पुनर्गठन के पश्चात अच्छा प्रदर्शन किया है। पूर्व में महाराष्ट्र एवं गुजरात का विभाजन हो, हरियाणा एवं पंजाब का विभाजन हो, अथवा छत्तीसगढ़, झारखण्ड व उत्तराखंड हो या फिर नवगठित तेलंगाना हो। इनमें से मात्र झारखण्ड आशानुरूप कार्य नहीं कर पाया वरन अन्य पांच राज्यों नें उत्कृष्ट प्रदर्शन किया।

यदि छोटे राज्य लाभकारी न होते तो हमारा विद्वान नेतृत्व संविधान में राज्यों की अवधारणा ही नहीं रखता तथा केंद्र सरकार को ही सम्पूर्ण दायित्व दिया जाता। परन्तु उन्हें इस कठिनाई का आभास था कि बिन आंतरिक विभाजन के समग्र विकास संभव नहीं है। इसी का अनुसरण करते हुए राज्यों का गठन किया गया। तत्पश्चात भी जब समस्याओं का पूर्ण समाधान न हो सका तो 24 अप्रैल 1993 को बलवंत राय मेहता समिति की रिपोर्ट अनुसार त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था को संवैधानिक दर्जा दिया गया। उसका मूल भाव यही था कि स्थानीय प्रतिनिधित्व को बढ़ावा मिले तथा सत्ता का विकेंद्रीकरण हो।

इस सब से निष्कर्ष यही निकलता है, कि छोटे राज्य लाभकारी सिद्ध होते हैं, अतः बुन्देलखण्ड राज्य हमारा अधिकार है। हम इसे लेकर रहेंगे।

जय बुन्देलखण्ड, जय हिन्द


लेखक -
महेश शुक्ला (विधि छात्र ) .






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