Thursday, June 25, 2020

बुन्देलखण्ड की महिमा

बुन्देलखण्ड की महिमा

यह बुन्देलखण्ड की धरती है, हीरे उपजाया करती है।
कालिन्दी शशिमुख की वेणी, चम्बल, सोन खनकते कंगना।
विन्ध्य उरोज साल बन अंचल, निर्मल हंसी दूधिया झरना।
केन, धसान रजत कर धौनी, वेत्रवती साड़ी की सिकुड़न।
धूप छांह की मनहर अंगिया, खजुराहो विलास गृह उपवन।
पहिन मुखर नर्मदा पैंजनी, पग-पग शर्माया करती है।
यह बुन्देलखण्ड की धरती, हीरे उपजाया करती है।

परमानन्द दिया ही इसने, यहीं राष्ट्रकवि हमने पाया।
इसी भूमि से चल तुलसी ने, धर-धर सीताराम रमाया।
चित्रकूट देवगढ़ यहीं पर, पावन तीर्थ प्रकृति रंगशाला।
झांसी के रण-बीचि यहीं पर, धधकी प्रथम क्रान्ति की ज्वाला।
पीछें रहकर यह स्वदेश को, नेता दे जाया करती है।
यह बुन्देलखण्ड की धरती, हीरे उपजाया करती है।

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