हमारी सरकार द्वारा किसानों की आमदनी दूनी करने
का बीड़ा उठाया गया है साथ ही किसान सम्मान योजना की शुरुआत भी की गई है जिसका लाभ
चुनाव के पहले ही तमाम भाग्यशाली किसानों को बिना किसी दौड़भाग के एक नहीं दो दो
किस्त के रूप में मिल चुका है लेकिन जो किसान प्रधानमंत्री की सम्मान योजना से
वंचित रह गए हैं अब उन्हें अपना पंजीकरण कराने के लिए इधर उधर नामित अधिकारियों
कर्मचारियों के पास दौड़ना पड़ा रहा है। किसान को देश की रीढ़ माना जाता है इसलिए
छोटे किसानों के वजूद को बचाए रखना राष्ट्रहित में जरूरी है क्योंकि उसी बेवश बेचारे
किसान के त्याग बलिदान के बल पर देश हरा भरा सोन चिर्रैया जैसा बना हुआ है|
लॉकडाउन लागू होने के बाद से किसानों को तरह-तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ा है। अधिकतर किसान इस समय तैयार फसल को नहीं बेच नहीं पाए। इससे उनमें मायूसी फैली। विशेषकर सब्जी और फल उत्पादक किसानों की मुसीबतें अधिक बढ़ी हुई हैं।
किसान भी पिछले एक महीने में परेशान रहे सब्जी जैसे प्याज की खेती करने वाले किसान भी मुसीबत में हैं। किसानों के मुताबिक जो प्याज लॉकडाउन के पहले 1800 से 2000 रुपए क्विंटल बिक रहा था, वह लॉकडाउन के दौरान 400 से 800 रुपए के आस-पास बिकता रहा है। अब मिली छूट से ऐसे किसानों को कितनी राहत मिलेगी, अभी तय नहीं है क्योंकि अंतर-राज्यीय परिवहन जैसी दिक्कतें कायम हैं। फिलहाल स्थानीय बाजार खुलने की आशा है, जो अभी तक बंद था। लॉकडाउन ने सप्लाई चेन को तोड़ दिया है। किसानों को अपनी उत्पाद दूर दराज के इलाके में भेजने के लिए ट्रांसपोर्ट की भारी समस्या आ रही है। यानी मांग होने के बावजूद सप्लाई नहीं हो पा रही है। शहरों मे लोगों को सब्जियों और फलों की कमी हो रही है जबकि खेतों मे फसल बर्बाद हो रहा है।
लॉकडाउन लागू होने के बाद से किसानों को तरह-तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ा है। अधिकतर किसान इस समय तैयार फसल को नहीं बेच नहीं पाए। इससे उनमें मायूसी फैली। विशेषकर सब्जी और फल उत्पादक किसानों की मुसीबतें अधिक बढ़ी हुई हैं।
किसान भी पिछले एक महीने में परेशान रहे सब्जी जैसे प्याज की खेती करने वाले किसान भी मुसीबत में हैं। किसानों के मुताबिक जो प्याज लॉकडाउन के पहले 1800 से 2000 रुपए क्विंटल बिक रहा था, वह लॉकडाउन के दौरान 400 से 800 रुपए के आस-पास बिकता रहा है। अब मिली छूट से ऐसे किसानों को कितनी राहत मिलेगी, अभी तय नहीं है क्योंकि अंतर-राज्यीय परिवहन जैसी दिक्कतें कायम हैं। फिलहाल स्थानीय बाजार खुलने की आशा है, जो अभी तक बंद था। लॉकडाउन ने सप्लाई चेन को तोड़ दिया है। किसानों को अपनी उत्पाद दूर दराज के इलाके में भेजने के लिए ट्रांसपोर्ट की भारी समस्या आ रही है। यानी मांग होने के बावजूद सप्लाई नहीं हो पा रही है। शहरों मे लोगों को सब्जियों और फलों की कमी हो रही है जबकि खेतों मे फसल बर्बाद हो रहा है।
कृषि संकट तब
ख़त्म या कम हो सकता है, जब खेती पर
निर्भर सभी वर्गों में ख़ुशहाली आए। ग्रामीण संकट का दायरा और बड़ा है। यह तब
क़ाबू में आ सकता है, जब पूरी ग्रामीण
आबादी की आर्थिक स्थिति सुधरे। कृषि आधारित समूहों में छोटे और सीमांत किसानों का
अनुपात बहुत ज़्यादा है। दरअसल, कुल किसानों में
सीमांत किसानों की संख्या तक़रीबन दो तिहाई है। सवाल है कि जिस कदम से किसानों के
इतने बड़े हिस्से को लाभ ना हो, उससे कृषि संकट
कैसे दूर होगा?
इसलिए वर्तमान
किसान आंदोलन को अपनी मांगों का दायरा बढ़ाना चाहिए। उन्हें वैसी मांगों को भी
अपने आंदोलन के एजेंडे में शामिल करना चाहिए, जिनसे कृषि और सभी वर्ग के किसानों को दीर्घकालिक लाभ हो।
मसलन, सभी किसानों को निर्बाध
बिजली की सप्लाई, सड़क एवं नहरों
का निर्माण, रेन वॉटर
हारवेस्टिंग, कारगर फ़सल बीमा
योजना पर अमल और मंडी सुधार ऐसे कदम हैं, जिनसे खेती को लाभकारी पेशा बनाने में मदद मिलेगी। साथ ही खेतिहर मज़दूरों और
अन्य ग्रामीण मेहनतकश तबकों को फ़ायदा पहुंचाने वाले कदमों की मांग भी उन्हें करनी
चाहिए। सरकारों के लिए भी बेहतर यह होगा कि वे दीर्घकालिक लाभ वाले उपायों में
निवेश करने को प्राथमिकता दें।
No comments:
Post a Comment