वे दिन-रात, जाड़ा-गर्मी, बारिश-सूखे, पर्याप्त आमदनी होगी या नहीं-इन सबकी चिंता से निस्पृह रह कर अथक श्रम करते हैं, लेकिन उन्हें अपने ही श्रम का मूल्य तय करने का अधिकार नहीं है। किसान का बेटा होने के कारण मैं किसानों की अनेक चुनौतीपूर्ण कठिनाइयों का स्वयं साक्षी रहा हूं।
यदि हमारी अर्थव्यवस्था के किसी एक वर्ग को अपना व्यवसाय करने के संवैधानिक अधिकार से वंचित रखा गया तो वे किसान हैं।
उन्हें अपने पड़ोस में भी अपने कृषि उत्पाद को बेचने का हक नहीं।
खेती से उनकी आमदनी बाजार, बिचौलियों और साहूकारों की कृपा पर निर्भर है।
कृषि उत्पाद की इस शोषणकारी बिक्री और खरीद की व्यवस्था में उत्पादक किसानों और उपभोक्ताओं, दोनों का दोहन होता है।
किसान बाजार में खरीददार की कृपा पर निर्भर होकर रह गया।
किसान को अपने उत्पाद को अपनी इच्छा अनुसार बेचने की स्वतंत्रता मिलनी चाहिए।
कोल्ड स्टोरेज, भंडारण और खराब हो सकने वाली वस्तुओं के लिए परिवहन जैसी बुनियादी सुविधाओं के अभाव में देश को कृषि उत्पादों के लिए एक दक्ष और सुदृढ़ आपूर्ति श्रृंखला विकसित करने में अभी समय लगेगा। किसान हमारे देश की खाद्य सुरक्षा की नींव हैं और उन्होंने यह सुरक्षा अपनी कड़ी मेहनत से सुनिश्चित की है। आज हम कृषि उत्पादन में अग्रणी हैं, लेकिन इसके बदले में किसानों को उनका हक नहीं मिला। इसके बावजूद किसानों ने कभी भी हड़ताल का सहारा नहीं लिया। देश की विषमताओं को देखते हुए उपभोक्ताओं का संरक्षण आवश्यक है, लेकिन क्या यह किसान की कीमत पर होना चाहिए?
अधिक से अधिक खरीददारों को सीधे किसान से उसके कृषि उत्पाद खरीदने का अधिकार होना चाहिए, लेकिन सशक्त कृषि उत्पाद संगठनों के व्यापक तंत्र का विस्तार किया जाना भी जरूरी है, ताकि किसानों की मोलभाव करने की सामूहिक शक्ति बढ़े, वे मोलभाव करने में सक्षम हों और एक अकेले किसान के शोषण की संभावना को समाप्त किया जा सके। किसानों की आमदनी बढ़ाने, कृषि में निजी निवेश बढ़ाने और ठेके पर खेती के लिए एक प्रभावी कानून बनाया जाना जरूरी है
किसानों की आमदनी को बढ़ाने की आवश्यकता है
हम अपने किसानों को विकल्प दें और यह निर्णय करने की छूट दें कि वे अपना लाभ देखते हुए देश में कहीं भी अपना उत्पाद बेच सकें। कृषि विपणन कानूनों के संशोधन में और उसके बाद उन्हें प्रभावी रूप से लागू करने में सभी हितधारकों को साथ लिया जाना आवश्यक है, तभी उनके उद्देश्यों को उनकी मूल भावना सहित प्राप्त किया जा सकेगा।
कोरोना काल में बहुत से लोग घर से ही काम कर रहे हैं, लेकिन किसान के पास ऐसा कोई विकल्प नहीं। उसे तो खेतों में ही काम करना है। लॉकडाउन के बावजूद गेंहू, धान, दलहन आदि की बुआई, रोपाई हुई है।
कृषि क्षेत्र
में नीतियां पहले भी बनती रही हैं। सुधार पहले भी होते रहे हैं, लेकिन वे सभी समस्याओं का एक साथ निराकरण
करने वाले नहीं होते थे।
अब आवश्यक वस्तु
अधिनियम,
एपीएमसी एक्ट और
एग्रीकल्चर प्रोड्यूस प्राइस एंड क्वालिटी एश्योरेंस जैसे नियमों में सुधार के साथ
पशुपालन,
डेयरी, मछली पालन, खाद्य प्रसंस्करण जैसे कृषि के सहउद्यमों के लिए वित्तपोषण की व्यवस्था कर
कृषि क्षेत्र के पंख लगाने का काम किया जाय।
जिससे किसानों
की आय दोगुनी करने का सपना पूरा हो सके
नीति का लाभ किसान कैसे उठाएं? कैसे उनकी आमदनी दोगुनी हो? कैसे उनके उत्पाद को सही बाजार
मिले? कृषि
उत्पादों के निर्यात में भारत कैसे वैश्विक प्रतियोगिता में ठहर सके? इन सभी सवालों का जवाब सरकार को
देना चाहिए|
उत्तर प्रदेश इतनी विविधताओं वाला प्रदेश है कि यहां पश्चिमी उप्र के लिए बनाई गई कृषि नीति बुन्देल पूर्वांचल में नहीं लागू की जा सकती हमारे उत्तर प्रदेश राज्य को अपनी भौगोलिक स्थिति, मिट्टी, जलवायु एवं वहां पैदा होने वाली अच्छी फसलों के आधार पर अपनी रणनीति तैयार करनी होगी।राज्य को सभी जिलो के अपने किसानों को उनकी जरूरत के अनुरूप तैयार करना होगा और उन्हें संसाधन एवं तकनीक उपलब्ध करानी होगी। इसके बाद बाकी काम किसान खुद कर ही लेगा। मध्यस्थों की बाध्यता खत्म होने के बाद एक राज्य का किसान दूसरे राज्य के व्यापारी से सीधे सौदा तय कर अपना माल वहां भेज सकता है।
जब किसानों की आमदनी दोगुनी करने की बात होती है तो हमारा ध्यान सिर्फ उपज का मूल्य बढ़ाने पर जाता है। सिर्फ मूल्य बढ़ने से हम वैश्विक प्रतियोगिता में नहीं ठहर पाएंगे। हमें फसल का लागत मूल्य कम करना होगा, बेहतर बीज का उपयोग कर उपज बढ़ानी होगी, लॉजिस्टिक्स लागत कम करनी होगी, खेत से ग्राहक के हाथ तक जाने का समय घटाने के साथ इस दौरान होने वाली उपज की बर्बादी भी रोकनी होगी। अभी किसान अपने खेत से माल लादकर मंडी ले जाता है, मंडी में थोक व्यापारी से खुदरा व्यापारी के हाथ और फिर ग्राहक तक पहुंचता है। इतनी लंबी शृंखला में उपज और समय की बर्बादी के साथ लागत भी कदम दर कदम बढ़ती ही जाती है। इसका नुकसान किसान को ही उठाना पड़ता है।
भारत में अनाज, सब्जी, दूध और मछली पालन , वन एवं वनोपज ये की ग्रामीण अर्थव्यवस्था है। यदि इसमें होने वाली बर्बादी ही रोक ली जाए तो सीधा लाभ किसान को हो सकता है। किसान के कच्चे माल का जितना वैल्यू एडीशन किया जा सके उसका लाभ ग्राहक से लेकर किसान तक को देने के साथ भारत वैश्विक बाजार में प्रतियोगिता भी कर सकता है।जब ग्रामीण क्षेत्रों में ये गतिविधियां बढ़ेंगी तो वहां निवेश बढ़ेगा और नए रोजगार पैदा होंगे। सरकार की ओर से खेती के अलावा पशुपालन, मछली पालन, मधुमक्खी पालन जैसे जिन सहउद्यमों के लिए मदद की घोषणा की गई है उन्हें यदि राज्य सरकारें पारदर्शी तरीके से लागू करा सकें तो ग्रामीण क्षेत्रों में पंचायत, ब्लॉक से लेकर जिला स्तर तक कृषि संबंधी उद्यम खड़े हो सकते हैं। इनमें युवाओं और महिलाओं को उनके घर के पास ही बड़े पैमाने पर रोजगार मिल सकता है। खास बात यह कि ये उद्यम अधिक निवेश वाले नहीं होंगे।
No comments:
Post a Comment